Monday, April 20, 2020

अतिथि तुम कब जाओगे....

आज अमरीका से आई एक खबर ने दिल दहला दिया। वहाँ के एक ओल्ड एज होम से 17 लाशें निकाली गयी। कहा जा रहा है  कि 500 की क्षमता वाले इस होम में कोरोना से कई लोग संक्रमित हो गए हैं और इस बात की सूचना भी किसी को नहीं दी गयी है।
निखालिस  भारतीय मानसिकता से रचा वसा मेरा मानस  social distancing रखने वाले इन देशों की इन व्यवस्थाओं से सहमत नहीं होता। जीवन के असहाय दौर को एकाकी हो कर जीना, बड़ा दुखद है। उस पर ऐसी महामारी  का तेजी से फैलाव, तो शायद ऐसे होम किसी की प्राथमिकता में ही न आए हों।
अब मैं सोच रही हूँ की virus बड़ा किआदमी, तो यूं लगा कि आदमी छोटा हो गया है, उसका अवमूल्यन  हो गया।  वाइरस के बड़े वजूद ने ventilator, बीमारी का स्टेटस, उम्र के आधार पर आदमी का बंटवारा करा दिया, और तो और कब्रिस्तान मे भी प्रतीक्षारत बना दिया।
यह सब किस बात का सूचक है, हम कहाँ आ खड़े हो गए। ज़िंदगी की तेज रफ्तार ने आज पूरे विश्व को जहां लाकर खड़ा कर दिया है, वो निश्चित ही सीख देने वाला है।
काश हम कुछ सीख सकें।
फिलहाल तो यही कहना है कि अतिथि तुम कब जाओगे।

Saturday, May 19, 2018

102 Not Out

इन दिनों जब हम हर छोटी मोटी सी बात पर अपने जीवन से समझौता करने लगते है ऐसे में उमेश शुक्ल की फिल्म 102  नॉट आउट जीवन जीने की कला सिखाती है. ढलती उम्र जीवन में नीरसता, समझौता करना और उमीदों की डोर पकड़ना सिखाती है. ऐसे में 102 साल का पिता 75 साल के बेटे को खुश मिजाज रहना, उम्मीद जगाना, जीवन के कड़वे सच से सरोकार करना सिखाता है.
सौम्या जोशी के बहुचर्चित गुजराती नाटक पर केंद्रित यह  फिल्म एक बार फिर वर्तमान पारिवारिक स्थितियों को उजागर करती है. मां-बाप अपने बच्चों के सपनो को ऊँची उड़ान देते हैं, बच्चे सब भूल कर अपनी दुनिया में मशरूफ हो जाते हैं. उनके पास उत्तर होता है I hope  you  understand . माता पिता फिर भी इंतजार करते हैं पुरानी चीजों, स्मृतियों के साथ की वो  वापिस आयेगा. पर उसका उत्तर होता है..  I hope  you  understand.
फिर अचानक एक दिन वह वापिस आने की सोचता है. तो बूढ़ी आँखें जान जाती है कि यह सहज प्रेम उसे खींच कर नहीं ला रहा है, प्रॉपर्टी कि चाह उसे यहाँ ला रही है.
जीवन का इतना मार्मिक चित्रण हंसी मजाक में ही कर देना निश्चित ही बहुत बड़ी उपलब्धि है. ऐसे संवेदनशील विषय पर हंसी मजाक से भरपूर फिल्म बना देना निश्चित ही अनूठी कला मानी जानी चाहिए. 

Wednesday, June 19, 2013

प्रकृति का कहर

बारिश का इंतजार करना सबसे खूबसूरत काम होता है. आकाश में तपता  सूरज बारिश के इंतजार में सुन्दर लगता है. जैसी ही बूंदे आकाश से गिरकर माथे पर पड़ती है सुकून सा लगता है. पर अबकी ऐसा नहीं लगा. अबके तो बारिश कहर बन के ढह गयी. जाने कहाँ से इतने भारी हो गए बदल की फट गए. जाने कितनी आस्थाएं जलमगन हो गयीं. जाने कितने ख्वाव घाटियों में समा गए.
प्रकृति सबकी  पालनहारी, ऐसे कैसे नाराज़ हो गयी.
पिछले साल हम भी थे इन्ही वादियों में, अप्रितम सौंदर्य, एक अलग दुनिया, सच्ची देव भूमि, शांत माहोल, शांत लोग. कोई आपा धापी नहीं, कहीं बरफ, कहीं पानी, कहीं सुन्दर पेड़, बस इतनी  ही कहानी.
इसी कहानी में खो गए कई लोग, वो खच्चर, वो टैक्सी, वो भेड़ों के झुण्ड को हांकती लड़कियां सब.

सब यात्रियों की चर्चा कर रहे है, स्थानीय लोगो के बारे में तो पूछ परख ही नहीं. 

Thursday, March 7, 2013



कल
सब मिलकर मनाना उत्सव
खूब गुणगान करना,
महिमा मंडन करना,
अनेकों मंचों से.
कहना तू देवी है, माँ है,
ममतामयी माँ,
ये सृष्टि सुंदर है तुझी से.

फिर मंच से नीचे
उतरते ही उखाड़ फेंकना मुखौटे को
आ जाना अपनी औकात पर
तलाशना  कौन किस साड़ी में सुन्दर दिख रही है.
वो बात करे तुमसे तो रस भर कर करना बातें
और बात न करे तो
कहना पड़ोसी से
“बहुत चालु है......”
यदि जोर से हँसे तो कहना कि
कैसी बेशर्म  है.
यदि अपने हक़ मांगने लगे तो
सारे इक्ट्ठे होकर कुचल देना
उसकी ऊँची आवाज को
यदि वो तेजी से आगे बढ़े तो
बुन देना एक जाल उसके आसपास
वो उलझ जायेगी उसी में
भूल जायेगी अपनी गति.
उसे उलझन में छोड़

अपनी छाती को चौड़ा कर
जता देना कि हम से यदि
मुकाबला करोगी
तो ......

7 मार्च, महिला दिवस की पूर्व संध्या

Saturday, February 16, 2013

14 फरवरी विश्व प्यार का दिन। इस साल one billion  rising की तरह मनाया गया। महिला हिंसा के खिलाफ पूरे विश्व के 160 देशों की महिलाओं ने एक साथ खड़े होने का मानस बनाया। चुप्पी तोड़ उठ खड़े होकर एक साथ  नाचने गाने का उत्सव मनाया.हर 3 माहिलाओ   में से  1 हिंसा या बलात्कार की शिकार होती है। इसी मान  से सौ करोड़ माहिलाओ का  ये उत्सव था। जगह जगह इसे मनाया गया। किसी ने नाचा  तो किसी ने गाया .
राजधानी में भी आयोजन हुआ, पर उसे देखकर मन उदास हो गया। एक activist फिल्म अभिनेत्री की उपस्थिति थी। पर कोई स्थानीय भागीदारी नहीं थी। दूर आदिवासी  ग्रामीण क्षेत्रों से आये पुरुष महिलाएं ही नज़र आये। जिन्हें अपने आने का मकसद ही पता नहीं था। वे तो अपनी धुन में थे। रात  भर यात्रा की, फिर वहीँ पार्क में खाना खाया वही  सो गए धुप के बिखरे टूकड़ो के साथ/
मंच पर बैठे लोग बड़ी बड़ी बातें करते रहे। सपने दिखाते रहे। जब सोये हुए लोगों की नींद टूटी, तो बजाने  लगे बांसुरी और ढोल तो किसी बड़े ने आकर चुप करा दिया।
मंच फिर मुखर हुआ फिर जोरों से सरकार  को कोसने, नेताओं को गाली  देने और समाज के बुरे होने पर भाषण  दिए जाने लगे। आखिरकार  पंडाल में बैठे स्त्री पुरुषो ने अपने घेरे बनाये और बातचीत शुरू कर दी।
सभा समाप्त हुई। फिर दूर से आये लोग अपने झोले उठाये स्टेशन की और रवाना होने लगे।
मुझे लगा की घर परिवार, आसपास की हिंसा के विरोध के लिए आये ये लोग अपने साथ क्या लेकर लौटे ?
इनकी क्या भागीदारी रही। किसी ने इन्हें सुना ? मंच के लोगो ने सोचा होगा की इनकी क्या सुनना ?
यदि आज ये यहाँ दिल खोल कर नाचते और ऊपर आकाश की तरफ मुह कर ठंडी साँस लेते तो सदियों की पीड़ा को पल भर का आराम मिलता।
इन के भी हाथ शामिल हो जाते one billion  rising में .

Friday, February 15, 2013

जिन्दगी की खूनी रफ्तार


आज के अखबार रोज की ही तरह  हादसों से भरे थे। कुछ पुलिस अधिकारी अपने मित्र की शादी में जा रहे थे कि  कार  का एक्सीडेंट हो गया। दो लोग मारे  गए। जिन्दगी समाप्त हो गयी।
कहतें हैं बेशकीमती है ये जीवन। कांच की तरह नाजुक भी है। इसे  संभाल  कर रखना चाहिए/ पर कहने वाले तो यहीं है, जाने वाले चले जाते हैं तो फिर उनसे कैसे पूंछे कि उन्होंने क्यों नहीं संभाल कर रखा उनका जीवन ?

इन दिनों जीवन को पर लगे हैं, सभी उड़ रहें है। सब को गति चाहिए। गति है तो प्रगति होगी, ऐसे नारे भी लगाये जाते हैं। ये जोश सड़कों पर अक्सर दीखता है। overtake खतरनाक बीमारी है। कभी भी कैसे भी ओवरटेक करिए और निकल जाईये। हमारे ऐसा करने से कौन परेशानी में पड़  सकता है  उससे हमें क्या लेना देना है। हमें तो रफ़्तार  पकडनी है। यदि रेड लाइट है, तो उसे ओवरलुक कर तेजी से गाड़ी निकल लेना स्मार्ट होने की निशानी है। कभी कोई ऐसे में hit  होगा तब देखेंगे अभी तो उड़ने दीजिये मस्ती में।
जिन्दगी की ये रफ़्तार इन्सान को तो पता नहीं कहाँ ले जाती है पर माँ बाप, पत्नी, बच्चों परिवार के लोगो को गहरी पीड़ा दे जाती  हैं। ऐसी पीडाएं जो ख़त्म ही नहीं होती। ऐसे गहरे जखम जो भरते ही नहीं।पर -
कौन समझेगा और समझाए कौन


Thursday, December 27, 2012

एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन 
गिनते दिन पल छिन 
लौट कभी आएगा 
मन का जो मीत गया 
एक बरस बीत गया 

धीरे धीरे ये साल भी गुजर जाने की कगार पर है। 
वैसे तो गुजरते हुए हर एक लम्हें के साथ समय गुजरता ही जाता है 
पर जाने क्यों इन आखिरी दिनों में अपने जाने का बड़ा एहसास दिलाता है .
और फिर जाते हुए साल के साथ खोने पाने के लेखे जोखे सामने आने लगते हैं .
अच्छा जो बीता होगा  वो कपूर की तरह उड़ गया। जो बुरा था वो टीस बन सालता है .
ये साल मुझ से मेरा एक बहुत  अच्छा मित्र एक बहुत बेहतर, सरल इन्सान ले गया।
अनहोनी  जो घटी वो बहुत ही त्रासद है .
पहाड़ो में रहता था, मस्त अपनी वादियों में, 
प्रकृति में जीता था तो उतना ही निश्छल था 
जब गाता था तो कई बार  मैं सोचती थी 
कि जगजीत सिंह से ज्यादा मैं उससे सुनूँ 
पर क्या जानती थी कि एक एक कर दोनों ही चले जायेंगे .
चिठ्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए---