कल
सब मिलकर मनाना उत्सव
खूब गुणगान करना,
महिमा मंडन करना,
अनेकों मंचों से.
कहना तू देवी है, माँ है,
ममतामयी माँ,
ये सृष्टि सुंदर है तुझी से.
फिर मंच से नीचे
उतरते ही उखाड़ फेंकना मुखौटे को
आ जाना अपनी औकात पर
तलाशना कौन किस साड़ी में सुन्दर दिख रही है.
वो बात करे तुमसे तो रस भर कर करना बातें
और बात न करे तो
कहना पड़ोसी से
“बहुत चालु है......”
यदि जोर से हँसे तो कहना कि
कैसी बेशर्म है.
यदि अपने हक़ मांगने लगे तो
सारे इक्ट्ठे होकर कुचल देना
उसकी ऊँची आवाज को
यदि वो तेजी से आगे बढ़े तो
बुन देना एक जाल उसके आसपास
वो उलझ जायेगी उसी में
भूल जायेगी अपनी गति.
उसे उलझन में छोड़
जता देना कि हम से यदि
मुकाबला करोगी
तो ......
7 मार्च, महिला दिवस की पूर्व संध्या
nice poem didi sach yahi hai
ReplyDeletenice poem didi sach yahi hai
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