Monday, April 23, 2012

   खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
        डूबा सागर-तीरे।

धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
        मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
        साथी लगा बुलाने।

तब फिर सिहरी हवा
लहरियाँ काँपीं
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
        जागी धीरे-धीरे।

अज्ञेय

Saturday, April 21, 2012

दीप उनका
रौशनी उनकी
मै जल रहा हूँ

रास्ते उनके
सहारा  भी उनका 
मैं चल रहा हूँ

प्राण उनके 
हर साँस उनकी
मैं जी रहा हूँ
- मुनि क्षमासागर