Wednesday, June 19, 2013

प्रकृति का कहर

बारिश का इंतजार करना सबसे खूबसूरत काम होता है. आकाश में तपता  सूरज बारिश के इंतजार में सुन्दर लगता है. जैसी ही बूंदे आकाश से गिरकर माथे पर पड़ती है सुकून सा लगता है. पर अबकी ऐसा नहीं लगा. अबके तो बारिश कहर बन के ढह गयी. जाने कहाँ से इतने भारी हो गए बदल की फट गए. जाने कितनी आस्थाएं जलमगन हो गयीं. जाने कितने ख्वाव घाटियों में समा गए.
प्रकृति सबकी  पालनहारी, ऐसे कैसे नाराज़ हो गयी.
पिछले साल हम भी थे इन्ही वादियों में, अप्रितम सौंदर्य, एक अलग दुनिया, सच्ची देव भूमि, शांत माहोल, शांत लोग. कोई आपा धापी नहीं, कहीं बरफ, कहीं पानी, कहीं सुन्दर पेड़, बस इतनी  ही कहानी.
इसी कहानी में खो गए कई लोग, वो खच्चर, वो टैक्सी, वो भेड़ों के झुण्ड को हांकती लड़कियां सब.

सब यात्रियों की चर्चा कर रहे है, स्थानीय लोगो के बारे में तो पूछ परख ही नहीं. 

Thursday, March 7, 2013



कल
सब मिलकर मनाना उत्सव
खूब गुणगान करना,
महिमा मंडन करना,
अनेकों मंचों से.
कहना तू देवी है, माँ है,
ममतामयी माँ,
ये सृष्टि सुंदर है तुझी से.

फिर मंच से नीचे
उतरते ही उखाड़ फेंकना मुखौटे को
आ जाना अपनी औकात पर
तलाशना  कौन किस साड़ी में सुन्दर दिख रही है.
वो बात करे तुमसे तो रस भर कर करना बातें
और बात न करे तो
कहना पड़ोसी से
“बहुत चालु है......”
यदि जोर से हँसे तो कहना कि
कैसी बेशर्म  है.
यदि अपने हक़ मांगने लगे तो
सारे इक्ट्ठे होकर कुचल देना
उसकी ऊँची आवाज को
यदि वो तेजी से आगे बढ़े तो
बुन देना एक जाल उसके आसपास
वो उलझ जायेगी उसी में
भूल जायेगी अपनी गति.
उसे उलझन में छोड़

अपनी छाती को चौड़ा कर
जता देना कि हम से यदि
मुकाबला करोगी
तो ......

7 मार्च, महिला दिवस की पूर्व संध्या

Saturday, February 16, 2013

14 फरवरी विश्व प्यार का दिन। इस साल one billion  rising की तरह मनाया गया। महिला हिंसा के खिलाफ पूरे विश्व के 160 देशों की महिलाओं ने एक साथ खड़े होने का मानस बनाया। चुप्पी तोड़ उठ खड़े होकर एक साथ  नाचने गाने का उत्सव मनाया.हर 3 माहिलाओ   में से  1 हिंसा या बलात्कार की शिकार होती है। इसी मान  से सौ करोड़ माहिलाओ का  ये उत्सव था। जगह जगह इसे मनाया गया। किसी ने नाचा  तो किसी ने गाया .
राजधानी में भी आयोजन हुआ, पर उसे देखकर मन उदास हो गया। एक activist फिल्म अभिनेत्री की उपस्थिति थी। पर कोई स्थानीय भागीदारी नहीं थी। दूर आदिवासी  ग्रामीण क्षेत्रों से आये पुरुष महिलाएं ही नज़र आये। जिन्हें अपने आने का मकसद ही पता नहीं था। वे तो अपनी धुन में थे। रात  भर यात्रा की, फिर वहीँ पार्क में खाना खाया वही  सो गए धुप के बिखरे टूकड़ो के साथ/
मंच पर बैठे लोग बड़ी बड़ी बातें करते रहे। सपने दिखाते रहे। जब सोये हुए लोगों की नींद टूटी, तो बजाने  लगे बांसुरी और ढोल तो किसी बड़े ने आकर चुप करा दिया।
मंच फिर मुखर हुआ फिर जोरों से सरकार  को कोसने, नेताओं को गाली  देने और समाज के बुरे होने पर भाषण  दिए जाने लगे। आखिरकार  पंडाल में बैठे स्त्री पुरुषो ने अपने घेरे बनाये और बातचीत शुरू कर दी।
सभा समाप्त हुई। फिर दूर से आये लोग अपने झोले उठाये स्टेशन की और रवाना होने लगे।
मुझे लगा की घर परिवार, आसपास की हिंसा के विरोध के लिए आये ये लोग अपने साथ क्या लेकर लौटे ?
इनकी क्या भागीदारी रही। किसी ने इन्हें सुना ? मंच के लोगो ने सोचा होगा की इनकी क्या सुनना ?
यदि आज ये यहाँ दिल खोल कर नाचते और ऊपर आकाश की तरफ मुह कर ठंडी साँस लेते तो सदियों की पीड़ा को पल भर का आराम मिलता।
इन के भी हाथ शामिल हो जाते one billion  rising में .

Friday, February 15, 2013

जिन्दगी की खूनी रफ्तार


आज के अखबार रोज की ही तरह  हादसों से भरे थे। कुछ पुलिस अधिकारी अपने मित्र की शादी में जा रहे थे कि  कार  का एक्सीडेंट हो गया। दो लोग मारे  गए। जिन्दगी समाप्त हो गयी।
कहतें हैं बेशकीमती है ये जीवन। कांच की तरह नाजुक भी है। इसे  संभाल  कर रखना चाहिए/ पर कहने वाले तो यहीं है, जाने वाले चले जाते हैं तो फिर उनसे कैसे पूंछे कि उन्होंने क्यों नहीं संभाल कर रखा उनका जीवन ?

इन दिनों जीवन को पर लगे हैं, सभी उड़ रहें है। सब को गति चाहिए। गति है तो प्रगति होगी, ऐसे नारे भी लगाये जाते हैं। ये जोश सड़कों पर अक्सर दीखता है। overtake खतरनाक बीमारी है। कभी भी कैसे भी ओवरटेक करिए और निकल जाईये। हमारे ऐसा करने से कौन परेशानी में पड़  सकता है  उससे हमें क्या लेना देना है। हमें तो रफ़्तार  पकडनी है। यदि रेड लाइट है, तो उसे ओवरलुक कर तेजी से गाड़ी निकल लेना स्मार्ट होने की निशानी है। कभी कोई ऐसे में hit  होगा तब देखेंगे अभी तो उड़ने दीजिये मस्ती में।
जिन्दगी की ये रफ़्तार इन्सान को तो पता नहीं कहाँ ले जाती है पर माँ बाप, पत्नी, बच्चों परिवार के लोगो को गहरी पीड़ा दे जाती  हैं। ऐसी पीडाएं जो ख़त्म ही नहीं होती। ऐसे गहरे जखम जो भरते ही नहीं।पर -
कौन समझेगा और समझाए कौन