Wednesday, September 26, 2012















प्रतिदान

चिड़िया ने
अपनी चोंच में
जितना समाया
उतना पिया
उतना ही लिया,
सागर में जल
खेतों में दाना
बहुत था।

चिड़िया ने
घोंसला बनाया इतना
जिसमें समा जाए
जीवन अपना
संसार बहुत बड़ा  था।

चिड़िया  ने रोज
एक गीत गाया
ऐसा जो
धरती और आकाद्गा
सब में समाया
चिड़िया ने सदा सिखाया
एक लेना
देना सवाया।
-मुनि क्षमासागरजी

Tuesday, September 18, 2012


         
बनता चुपचाप है 
बिगड़ता आवाज के साथ है 
जिन्दगी के इस दौर में 
बस आवाज़ ही आवाज़ है

Tuesday, September 11, 2012


अपने घर के गमले में खिल आये फूल, रंग बिरंगे अच्छे लगते हैं. उन्हें देख हम खुश होते हैं. फूल खिलें हम खुश हो जाएँ काम पूरा. कभी हमारे पास समय नहीं होता कि उन सुन्दर फूलों को खिलाने वाले पेड़ को जी भर के देखें, स्नेह और आभार से भर के. हम सब व्यस्त हैं!! भागने में ...जीवन की  दौड़ में .. पेड़ को देखेंगे तो समय बर्बाद हो जायेगा.. ये अलग बात है कि जब छुटियाँ आएँगी तब किसी wild life centuary में प्रकृति को देखने जायेंगे.
अपने आस पास बिखरे जीवन को नज़रंदाज़ कर देना हमारी आदत सी हो गयी है. 
प्रकृति से प्रेम करना हम भूल रहे हैं, हमें उसका  सिर्फ दोहन ही आता है.
प्रकृति से हम जुड़ेंगे तो मानो जीवन से जुड़ेंगे 
प्रकृति को प्यार कर के तो देखो, मन खुश हो जायेगा .

Monday, September 3, 2012

हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा


अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला

निदा फ़ाज़ली






Saturday, September 1, 2012

बीते दिन ....

बीते दिन कब आने वाले!

मेरी वाणी का मधुमय स्‍वर,
विश्‍व सुनेगा कान लगाकर,
दूर गए पर मेरे उर की धड़कन को सुन पाने वाले!
बीते दिन कब आने वाले!

विश्‍व करेगा मेरा आदर,
हाथ बढ़ाकर, शीश नवाकर,
पर न खुलेंगे नेत्र प्रतीक्षा में जो रहते थे मतवाले!
बीते दिन कब आने वाले!

मुझमें है देवत्‍व जहाँ पर,
झुक जाएगा लोक वहाँ पर,
पर न मिलेंगे मेरी दुर्बलता को अब दुलरानेवाले!
बीते दिन कब आने वाले!