14 फरवरी विश्व प्यार का दिन। इस साल one billion rising की तरह मनाया गया। महिला हिंसा के खिलाफ पूरे विश्व के 160 देशों की महिलाओं ने एक साथ खड़े होने का मानस बनाया। चुप्पी तोड़ उठ खड़े होकर एक साथ नाचने गाने का उत्सव मनाया.हर 3 माहिलाओ में से 1 हिंसा या बलात्कार की शिकार होती है। इसी मान से सौ करोड़ माहिलाओ का ये उत्सव था। जगह जगह इसे मनाया गया। किसी ने नाचा तो किसी ने गाया .
राजधानी में भी आयोजन हुआ, पर उसे देखकर मन उदास हो गया। एक activist फिल्म अभिनेत्री की उपस्थिति थी। पर कोई स्थानीय भागीदारी नहीं थी। दूर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों से आये पुरुष महिलाएं ही नज़र आये। जिन्हें अपने आने का मकसद ही पता नहीं था। वे तो अपनी धुन में थे। रात भर यात्रा की, फिर वहीँ पार्क में खाना खाया वही सो गए धुप के बिखरे टूकड़ो के साथ/
मंच पर बैठे लोग बड़ी बड़ी बातें करते रहे। सपने दिखाते रहे। जब सोये हुए लोगों की नींद टूटी, तो बजाने लगे बांसुरी और ढोल तो किसी बड़े ने आकर चुप करा दिया।
मंच फिर मुखर हुआ फिर जोरों से सरकार को कोसने, नेताओं को गाली देने और समाज के बुरे होने पर भाषण दिए जाने लगे। आखिरकार पंडाल में बैठे स्त्री पुरुषो ने अपने घेरे बनाये और बातचीत शुरू कर दी।
सभा समाप्त हुई। फिर दूर से आये लोग अपने झोले उठाये स्टेशन की और रवाना होने लगे।
मुझे लगा की घर परिवार, आसपास की हिंसा के विरोध के लिए आये ये लोग अपने साथ क्या लेकर लौटे ?
इनकी क्या भागीदारी रही। किसी ने इन्हें सुना ? मंच के लोगो ने सोचा होगा की इनकी क्या सुनना ?
यदि आज ये यहाँ दिल खोल कर नाचते और ऊपर आकाश की तरफ मुह कर ठंडी साँस लेते तो सदियों की पीड़ा को पल भर का आराम मिलता।
इन के भी हाथ शामिल हो जाते one billion rising में .
राजधानी में भी आयोजन हुआ, पर उसे देखकर मन उदास हो गया। एक activist फिल्म अभिनेत्री की उपस्थिति थी। पर कोई स्थानीय भागीदारी नहीं थी। दूर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों से आये पुरुष महिलाएं ही नज़र आये। जिन्हें अपने आने का मकसद ही पता नहीं था। वे तो अपनी धुन में थे। रात भर यात्रा की, फिर वहीँ पार्क में खाना खाया वही सो गए धुप के बिखरे टूकड़ो के साथ/
मंच पर बैठे लोग बड़ी बड़ी बातें करते रहे। सपने दिखाते रहे। जब सोये हुए लोगों की नींद टूटी, तो बजाने लगे बांसुरी और ढोल तो किसी बड़े ने आकर चुप करा दिया।
मंच फिर मुखर हुआ फिर जोरों से सरकार को कोसने, नेताओं को गाली देने और समाज के बुरे होने पर भाषण दिए जाने लगे। आखिरकार पंडाल में बैठे स्त्री पुरुषो ने अपने घेरे बनाये और बातचीत शुरू कर दी।
सभा समाप्त हुई। फिर दूर से आये लोग अपने झोले उठाये स्टेशन की और रवाना होने लगे।
मुझे लगा की घर परिवार, आसपास की हिंसा के विरोध के लिए आये ये लोग अपने साथ क्या लेकर लौटे ?
इनकी क्या भागीदारी रही। किसी ने इन्हें सुना ? मंच के लोगो ने सोचा होगा की इनकी क्या सुनना ?
यदि आज ये यहाँ दिल खोल कर नाचते और ऊपर आकाश की तरफ मुह कर ठंडी साँस लेते तो सदियों की पीड़ा को पल भर का आराम मिलता।
इन के भी हाथ शामिल हो जाते one billion rising में .