हमने
शिखरों पर जो प्यार किया
घाटियों में उसे याद करते रहे
फिर तलहटियों में पछताया किये
कि
क्यों जीवन यों बर्बाद करते रहे
पर जिस रोज सहसा आ निकले
सागर किनारे
ज्वार की पहली उत्ताल तरंग के सहारे
पलक की झपक भर में पहचाना
कि यह अपने को कर्ता जो माना
यही तो प्रमाद करते रहे.
—अज्ञेय