Saturday, May 19, 2018

102 Not Out

इन दिनों जब हम हर छोटी मोटी सी बात पर अपने जीवन से समझौता करने लगते है ऐसे में उमेश शुक्ल की फिल्म 102  नॉट आउट जीवन जीने की कला सिखाती है. ढलती उम्र जीवन में नीरसता, समझौता करना और उमीदों की डोर पकड़ना सिखाती है. ऐसे में 102 साल का पिता 75 साल के बेटे को खुश मिजाज रहना, उम्मीद जगाना, जीवन के कड़वे सच से सरोकार करना सिखाता है.
सौम्या जोशी के बहुचर्चित गुजराती नाटक पर केंद्रित यह  फिल्म एक बार फिर वर्तमान पारिवारिक स्थितियों को उजागर करती है. मां-बाप अपने बच्चों के सपनो को ऊँची उड़ान देते हैं, बच्चे सब भूल कर अपनी दुनिया में मशरूफ हो जाते हैं. उनके पास उत्तर होता है I hope  you  understand . माता पिता फिर भी इंतजार करते हैं पुरानी चीजों, स्मृतियों के साथ की वो  वापिस आयेगा. पर उसका उत्तर होता है..  I hope  you  understand.
फिर अचानक एक दिन वह वापिस आने की सोचता है. तो बूढ़ी आँखें जान जाती है कि यह सहज प्रेम उसे खींच कर नहीं ला रहा है, प्रॉपर्टी कि चाह उसे यहाँ ला रही है.
जीवन का इतना मार्मिक चित्रण हंसी मजाक में ही कर देना निश्चित ही बहुत बड़ी उपलब्धि है. ऐसे संवेदनशील विषय पर हंसी मजाक से भरपूर फिल्म बना देना निश्चित ही अनूठी कला मानी जानी चाहिए.