पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
धीरे धीरे ये साल भी गुजर जाने की कगार पर है।
वैसे तो गुजरते हुए हर एक लम्हें के साथ समय गुजरता ही जाता है
पर जाने क्यों इन आखिरी दिनों में अपने जाने का बड़ा एहसास दिलाता है .
और फिर जाते हुए साल के साथ खोने पाने के लेखे जोखे सामने आने लगते हैं .
अच्छा जो बीता होगा वो कपूर की तरह उड़ गया। जो बुरा था वो टीस बन सालता है .
ये साल मुझ से मेरा एक बहुत अच्छा मित्र एक बहुत बेहतर, सरल इन्सान ले गया।
अनहोनी जो घटी वो बहुत ही त्रासद है .
पहाड़ो में रहता था, मस्त अपनी वादियों में,
प्रकृति में जीता था तो उतना ही निश्छल था
जब गाता था तो कई बार मैं सोचती थी
कि जगजीत सिंह से ज्यादा मैं उससे सुनूँ
पर क्या जानती थी कि एक एक कर दोनों ही चले जायेंगे .
चिठ्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए---
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