Saturday, July 14, 2012














शीशा देने वाला



जब भी मैं
रोया करता
माँ कहती -
यह लो शीशा 
देखो इसमें
कैसी तो लगती है
रोनी सूरत अपनी
अनदेखे ही शीशा 
मैं सोच-सोचकर
अपनी रोनी सूरत
हँसने लगता।


एक बार रोई थी माँ भी
नानी के मरने पर
फिर मरते दम तक
माँ को मैंने खुलकर हँसते
कभी नहीं देखा।
माँ के जीवन में शायद
शीशा देने वाला
अब काई नहीं था।


सबके जीवन में ऐसे ही
खो जाता होगा
कोई शीशा देने वाला।


मुनि क्षमासागर

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