Friday, February 15, 2013

जिन्दगी की खूनी रफ्तार


आज के अखबार रोज की ही तरह  हादसों से भरे थे। कुछ पुलिस अधिकारी अपने मित्र की शादी में जा रहे थे कि  कार  का एक्सीडेंट हो गया। दो लोग मारे  गए। जिन्दगी समाप्त हो गयी।
कहतें हैं बेशकीमती है ये जीवन। कांच की तरह नाजुक भी है। इसे  संभाल  कर रखना चाहिए/ पर कहने वाले तो यहीं है, जाने वाले चले जाते हैं तो फिर उनसे कैसे पूंछे कि उन्होंने क्यों नहीं संभाल कर रखा उनका जीवन ?

इन दिनों जीवन को पर लगे हैं, सभी उड़ रहें है। सब को गति चाहिए। गति है तो प्रगति होगी, ऐसे नारे भी लगाये जाते हैं। ये जोश सड़कों पर अक्सर दीखता है। overtake खतरनाक बीमारी है। कभी भी कैसे भी ओवरटेक करिए और निकल जाईये। हमारे ऐसा करने से कौन परेशानी में पड़  सकता है  उससे हमें क्या लेना देना है। हमें तो रफ़्तार  पकडनी है। यदि रेड लाइट है, तो उसे ओवरलुक कर तेजी से गाड़ी निकल लेना स्मार्ट होने की निशानी है। कभी कोई ऐसे में hit  होगा तब देखेंगे अभी तो उड़ने दीजिये मस्ती में।
जिन्दगी की ये रफ़्तार इन्सान को तो पता नहीं कहाँ ले जाती है पर माँ बाप, पत्नी, बच्चों परिवार के लोगो को गहरी पीड़ा दे जाती  हैं। ऐसी पीडाएं जो ख़त्म ही नहीं होती। ऐसे गहरे जखम जो भरते ही नहीं।पर -
कौन समझेगा और समझाए कौन


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